- 162 Posts
- 3241 Comments
नौटंकी – राष्ट्रीय चरित्र
————————
( दो टिकटियां जिस में एक पर नट और दूसरी पर नटी की लाश पड़ी है। धीरे -धीरे इन टिकटियों से नट और नटी के साये उठते हैं। पास में एक कौवा जिसके बगल में किताब का ढेर रखा है और एक सफ़ेद बगुला जिसकी अंगुली में तागा लपटा है और वो तागा काले कौए की गर्दन में बंधा है )
नटी – ये क्या स्वामी हम अभी जिन्दा हैं , मरे नही ?
नट- हम अजर – अमर हैं। हम कभी नही मर सकते और न ही कोई हमें मार सकता है। सदियों से ऐसा ही हो रहा है और होता रहेगा।
नटी – ऐसा क्यों स्वामी , क्या हम काले कौए खाये हैं या सफ़ेद बगुलों के वंशज हैं।
नट- नही मेरी रानी , ऐसी कोई बात नही , हम इन दोनों में से कोई नही। न ही इन जैसे कभी हम हो सकते हैं।
नटी- तों फिर ऐसी कौन सी अमृत बूटी हम लोग पिये हैं। कहीं वो बेशर्मी बूटी तों नही।
नट- ठीक कह रही हो , ये बूटी भी है जिसे आज कल जम कर काले कौए और सफ़ेद बगुले दोनों टाइम घोंट -घोंट पी रहे हैं और उसके बाद उल्टियां भी कर रहे हैं।
नटी – हमरी याद में तों हम लोग ईका कबहुं नाही पिये ?
नट- हम अपनी बात कहाँ कह रहे हैं। हम कभी नही मर सकते क्योंकि हम सत्य हैं। सत्य कहना , सत्य दिखाना। सत्य रहना ये हमारे मूल तत्व हैं। समझी।
नटी-तबही तों हम कही यहाँ कोस- कोस सडक पर पिये का पानी नाही , मुला दारु की लाइन ते दुकान सजी हैं। पियो जितनी मर्जी।
नट- रानी ऐसा करो कुछ देर चुप चाप और पसरे रहा जाय , जोन हमका मारिन हैं कुछ दूर तलक चले जाएँ , नाही तों फिर मार खाए का पडी।
नटी- आखिर कब तक ऐसे ही पड़े रहेंगे। ये कहीं नही गए। हमेशा से हर जगह रहे हैं। उठो अपना काम -धाम शुरू किया जाय हमेशा की तरह। इनके चक्कर में न पडो.
नट- बोलो फिर आज क्या किया जाय ?
नटी -तुम भौं -भौं करो हम करें हुआ -हुआ।
(कौआ और बगुला -झूम -झूम कर भौं -भौं , हुआ – हुआ करने लगते हैं , नटी भी सुर में सुर मिलाती है )
नट- पगली पगला गयी , उनकी भाषा तुझे भा गयी ?
नटी – हम तों कर रहे थे स्वाँग , नाही पिये हम भांग।
नट- भारत बंटा
नटी – हाँ बंटा
नट- कश्मीर कटा
नटी- हाँ कटा
नट- चीन सटा
नटी – हाँ सटा
नट- कश्मीर जला
नटी- कश्मीर जला
नट- घर में ही बेघर
नटी- परिवार मरा
नट- मानवता रोयी
नटी- सहिष्णुता खोयी
नट- दंगे घर -घर
नटी- ममता रोयी
नट- दोष किसी का
नटी- किस पर रोपण
नट- कौन किया इनका पोषण
नटी-जग जानत नाम है रौशन
नट- कोई है रावण
नटी- कोई खर दूषण
नट – मौन रहे
नटी- सच कौन कहे
नट -स्वीकारे पुरुस्कार
नटी- न किया इनकार
नट- छुपे सिकन्दर जानत सब कोई
नटी- हद बेशर्मी की देश की प्रतिष्ठा विदेश में खोयी
नट- जिस थाली में खाते करते उसी थाली में छेद
नटी- वाह रे विद्वता करते न अच्छे बुरे में भेद
नट- अपनी संस्कृति कभी न प्यारी
नटी- इनसे तों गंगा मैया भी हारी
नट- इनका तों है विचित्र स्वभाव
नटी- न ये मरते न हम मरते दोनों के क्या एक ही भाव
नट- नही सजनी अमर दोनों पर हम दोनों में है एक भारी अन्तर
राष्ट्रीय चरित का मुख्य अभाव समझी आओ भाग चलें पोरबंदर
(कौवा नट के और बगुला नटी के सर पर प्रहार करता है , नट और नटी फिर टिकटी पर लेट जाते हैं )
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
Read Comments