kushwaha
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अधखुला शटर
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घीसू मोची- मान्यवर जी , इतने सवेरे – सवेरे , गले में बड़ी सी खुशबू दार माला, आँखों में चतुर शिकारी सी चमक , आगे पीछे चमचमाती गाड़ियों की हनक , पुरस्कार लेने जा रहे हैं या वापस करने।
मान्यवर– खामोश , तेल पेरते और दण्ड मारते लोगों कों देखो। ऊँट की फितरत देखो। खरबूजे का रंग देखो। गिरगिट की किस्मत देखो। बनारसकी भंग देखो, नेताओं का रंग देखो। गीदड़ों की जंग देखो -फैसला सुरक्षित है।
घीसू मोची- मान गए मान्यवर , हो आप बड़े धुरंधर।
मान्यवर–लेखक हूँ भाग्य का सिकन्दर। आओ , तुम भी साथ चलो पोरबंदर ।
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
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