- 162 Posts
- 3241 Comments
मुनादी (नौटंकी )
—–
सुनो सुनो सुनो सुनो
चाँद सुनो सूरज सुनो
सागर नदी पहाड सुनो
आँगन सुनो कानन सुनो
गूंगे बहरों बात सुनो
आम सुनो खास सुनो
रात सुनो सुबह सुनो
अपने मन की बात सुनो
खासो -आम
बोलना मना है
सुनो तुम ये ढोल
लो मत आफत मोल
कहता गरीब भिखारी
न मानोगे बात हमारी
हो जाओगे दुनिया से गोल
जीवन है बड़ा अनमोल
कर दें सरेंडर
चलें पोरबंदर ?
नट — ये कौन है जों इतने सवेरे कब्रिस्तान में ढोल पीट रहा है
नटी – ये मीडिया है , इसको सुनो और गुनो ,समझ आ जाए तों ठीक वरना अपना माथा धुनों।
————————————————————————————————————-
नट – आज डेरा यहीं जमाया जाय, दुनिया का तमाशा दिखाया जाय।
नटी – पीट रहा ये सर पर ढोल , कौन सुनेगा तेरे सुर बोल।
लोंक तन्त्र की क्या पहचान , बरसती लाठी बने न निशान।
नक्कार खाने में तूती की आवाज, कोई न करेगा तुझ पर नाज।
नट – टके सेर भाजी , टके सेर खाजा, हरीश चन्द चले गए , अब हर कोई राजा।
नटी – प्याज दाल पर सरकारें जाती , बीफ कांड मानवता चिल्लाती।
नट – ज्ञान बघारुहं मैं बहू भांती , पुरुस्कार हेतु मिली न पाती।
नटी – कहत गरीब पुरूस्कार वो पाते , आठ फिल्टर का जों तेल लगाते।
नट- बासी कढ़ी में आया उबाल, हुआ हुआ कर कर रहे कमाल।
नटी -बनी जलेबी अब उठा खमीर , बरसो सोया जागा जमीर।
नट – सम्मान होता ये क्या जाने , जन भावना क्या, क्या इसके मायने।
नटी- बंदर हाथ जों लगता शीशा , बैठता बन कर वो जगदीशा।
नट -सहिष्णुता – असहिष्णुता नही नई कहानी , सदियों सदियों की घ्रणित कहानी।
नटी – मठाधीश करते मठाधीशी , टूटती जिसमें जनता की बत्तीसी।
नट –विघटित हो समाज बाँटे रखना , खुशियाली निज हेतु छांटे रखना।
नटी – वादों की धारा जब बहती , दुष परिणाम बिचारी जनता सहती।
नट- उत्तर दक्षिण में भारत झूला , पश्चिम से भारतीय सभ्यता भूला।
नटी – पूरब से क्यों नही लेता ज्ञान , बने विश्व गुरु भारत महान।
नट- प्रतिरोध के अनेक हैं रास्ते , पलायन वादी फिर क्यों बन जाते।
नटी – राष्ट्र में पाया जों सम्मान , लौटा कर उसको क्यों करते अपमान।
नट- घर की बात घर ही में रखते , विश्व पटल पर यह नही फबते ।
नटी – माना हमने वक्त है भारी , क्यों न मिल जुल दशा सुधारी।
नट – विचार भेद अलग विषय है , एकता में ही होती जय है।
नटी – धार्मिक उन्माद नही मजबूरी , राष्ट्र का विकास प्रथम जरुरी।
नट – स्वस्थ लोकतंत्र के दो मीटर , एक कंडेनसर एक कैपीसीटर।
नटी – आयें इसको सिद्धांत बनाये, भारत माता के हम गुण गायें ।
नट – लोंक तंत्र का पहला बन्दर , आँखे मीचे मस्त कलन्दर
नटी – दूजा बैठा है कान दबाये , देखे सब मन मन मुस्काए
नट- मौन रहो कहे तीजा बंदर, चौथा कौन चलें पोरबंदर
क्रमशः —
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
Read Comments