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अच्छे दिन — अच्छा दिन

kushwaha
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अच्छे  दिन — अच्छा दिन
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प्रदीप एक स्वतंत्र विचार धारा  वाला पत्रकार।  अपनी दुनियां  में  मस्त रहना और कलम से आग उगलना।  लापरवाह और जिददी। रात्रि का  अधिकाँश समय
फुटपाथ पर , जिंदगी को ढूँढता हुआ.
बहुत चर्चित विषय —अच्छे दिन. जिसकी जुबान पर देखिये यही चर्चा। अब ये  नाश्ता ., भोजन हो गया है।
विचारों के समुन्द्र में डूबते – उतराते–किनारा कहाँ ?।  गरीबों का शरण स्थल  फुटपाथ — चौडी सडक / अतिक्रमण की भेंट चढा.  बिजली के खम्भे तार के बोझ से ज्यादा लदे  बिजली आपूर्ती से कम।  पञ्च सितारा होटलों में अब भी नारी बलवती , वेटर ही क्या हर सुविधा सम्पन्न  को अच्छी रात का इन्तजार।  वातानुकूलित सभा  गृहों में सर्वहारा के विकास पर लंबे -चौड़े भाषण फिर मोटी गर्दन  अहंकार से युक्त कुटिल मुस्कान।  वाह – वाह की थाली भर सौगात. फिर इति श्री. जाति वाद , दलित समाज के उत्थान की  बातें। केवल स्वार्थ पूर्ति, वास्तविकता कुछ भी नही।    दूसरे को नीचा दिखाना और अपने कर्मों को छिपाना. काफी हाउस में देर रात चर्चा , काफी ठंडी चर्चा गरम।  भोजनालयों, पार्टियों के उपरान्त आवास के बाहर पड़े भोजन के ढेर पर हमले करते पशु और मनुष्य में अंतर करना कठिन।
ले – देकर नींद की आगोश में लिपटा शहर।
रात के काँधे पर सवार एक भोर।   अच्छे  दिन — अच्छा दिन –की तलाश में अच्छी रात ?
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

अच्छे  दिन — अच्छा दिन

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प्रदीप एक स्वतंत्र विचार धारा  वाला पत्रकार।  अपनी दुनियां  में  मस्त रहना और कलम से आग उगलना।  लापरवाह और जिददी। रात्रि का  अधिकाँश समय

फुटपाथ पर , जिंदगी को ढूँढता हुआ.

बहुत चर्चित विषय —अच्छे दिन. जिसकी जुबान पर देखिये यही चर्चा। अब ये  नाश्ता ., भोजन हो गया है।

विचारों के समुन्द्र में डूबते – उतराते–किनारा कहाँ ?।  गरीबों का शरण स्थल  फुटपाथ — चौडी सडक / अतिक्रमण की भेंट चढा.  बिजली के खम्भे तार के बोझ से ज्यादा लदे  बिजली आपूर्ती से कम।  पञ्च सितारा होटलों में अब भी नारी बलवती , वेटर ही क्या हर सुविधा सम्पन्न  को अच्छी रात का इन्तजार।  वातानुकूलित सभा  गृहों में सर्वहारा के विकास पर लंबे -चौड़े भाषण फिर मोटी गर्दन  अहंकार से युक्त कुटिल मुस्कान।  वाह – वाह की थाली भर सौगात. फिर इति श्री. जाति वाद , दलित समाज के उत्थान की  बातें। केवल स्वार्थ पूर्ति, वास्तविकता कुछ भी नही।    दूसरे को नीचा दिखाना और अपने कर्मों को छिपाना. काफी हाउस में देर रात चर्चा , काफी ठंडी चर्चा गरम।  भोजनालयों, पार्टियों के उपरान्त आवास के बाहर पड़े भोजन के ढेर पर हमले करते पशु और मनुष्य में अंतर करना कठिन।

ले – देकर नींद की आगोश में लिपटा शहर।

रात के काँधे पर सवार एक भोर।   अच्छे  दिन — अच्छा दिन –की तलाश में अच्छी रात ?

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

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