kushwaha
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गुरु लघु और लघु गुरु, आपस में है मेल
चूक हुई तों समझिये, बिगड़े सारा खेल
खीरे सा मत होइये , गर्दन काटी जाय
दुनिया से तुम तो गये, स्वाद न उनको आय
इन्द्र देव नाखुश हुए, धरती सूखी जाय
फसल बाजरा तिल करें , दूजा न अब उपाय
जग में संगत बडन की, करो सोच सौ बार
जोड़ी सम होती भली , खाओ कभी न मार
चौबे जी दूबे बने, पीटत अपना माथ
छब्बे बनने थे चले, कुछ नहि आया हाथ
मोबाइल ले हाथ में , बाला करती चैट
गिटपिट गिटपिट बोलतीं , बिल्ली पकडती रैट
आपके अनुमोदन ने , डाली मुझमे जान
सीख रहा हूँ मैं अभी, मोहे नहि अभिमान
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
१२-०८-२०१४
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