kushwaha
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तिलक धारिबे घिसते चंदन
जय शिव जय रघुनायक नंदन
तेरी शरण सदा शिव प्यारे
विपदा हरत दरस हैं न्यारे
पाप पुन्य की गठरी बाँधे
जा पहुंचे जपते शिव राधे
अजब द्रश्य दीख तहं ग्रामा
भगती क्षीण पग पग ड्रामा
ऊँचे परवत छटा मनोहर
कटे वन सदा प्रक्रति धरोहर
सुंदर नर नारी के वेषा
कटते तन मन उपवन देखा
पाप पुन्य पग पग संग चलते
अमरबेल सम पापी पलते
कथनी करनी राखे भेदा
सुख कस पाये सुन लो वेदा
प्रकृति संग खेल रहे फल से हो अनजान
कटते वन देखत रहे कैसे बचते प्रान
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
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