हरियाली/* कुशवाहा //
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हरियाली
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कटते प्रतिदिन वन और उपवन
बिगड़ रहा है प्रकृति संतुलन
यह व्यथा तुम अपनी न मानो
संकट में है धरती जानो
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उर्वर धरती का श्रृंगार
पेड़ – पौधे लगें अपार
हरियाली से होगी खुशियाली
यही है जीवन का आधार
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प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
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