ऋषि मुनियों की ये धरती
बहती ज्ञान की गंगा
योगी सिद्ध जन पूजे जाते
था मन निर्मल तन चंगा
कोई गाये लहराए कोई पूछे
बाबा रे बाबा तेरा रंग कैसा
दिव्य मुस्कान ले बाबा बोले
जिसमें मिला दो उस जैसा
काल बदला विचार बदला
आदमी का हाल बदला
अंधविश्वास आधुनिकीकरण की दौड़
बाबाओं ने भी चोला बदला
बिकता पानी बिकता खून
बिकती भूख गिरते भ्रूण
अस्मत बिकती कटते वन
सफ़ेद चोला काला मन
बिक रही जब हर चीज
बाबा फिर क्यों रहे गरीब
अपनी सुनते अपनी कहते
बाबा को मिल ताने देते
ध्यान लगा सुन लो भैया
बाबा जी अब क्या कहते
कौन कहा भैया बाबा बोलो
पाप पुन्य की गठरी खोलो
मैं ढोंगी चालबाज लालच में तुम्हें फँसाता
इतने तो नहीं मूढ़ मकड जाल समझ न आता
आते तुम सुन पास पड़ोस विज्ञापन तुम्हे लुभाता
बदल गया जग संस्कार समझ न तुमको आता
पूर्ण होते जब मनोरथ तुम्हरे शरण लगती प्यारी
भड़क गए बिफर पड़े बाबा लगता ढोंगी व्यभिचारी
कोई पहने श्वेत वस्त्र कोई भगवा नाना रूप धारी
बार बार तुम लुटते हर बार करते गलती भारी
खुद चाहत रखते हो हो घर बार धन मोटर गाडी
श्रम किये बिन कुछ न मिलता करम गति जात न टारी
चढाते भेंट मन से अपने बनाते मुझे वैभव शाली
घर की चकिया कोई न पूजत राजा हो या माली
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