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मेरे वतन

kushwaha
kushwaha
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मेरे वतन
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देश खड़ा चौराहे पर
मुखिया करते हैं मक्कर
घर घुस हमको मार रहे
प्रेम से बोलते उन्हें तस्कर
सांझ सवेरे युगल गीत सुन
कायर अरि प्रतिदिन बहक रहा
मत टोक मुझे मत रोक मुझे
अंगार ह्रदय में दहक रहा
पिया दूध माँ तेरा हमने
अमृत, वो नही था पानी
आकर तुझको आँख दिखाये
जियूं में व्यर्थ ऐसी जवानी
नभ में तिरंगा फहरेगा
माँ न कर तू दिल मे मलाल
भले शीश गिरे धरती पर
धरा रक्त से हो जाय लाल

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

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