kushwaha
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जीत हार
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जीत को जीत न समझो
हार को मानो न हार
प्रेम की बरखा करो
छेडो राग मल्हार
दोस्त दुश्मन कोई नहीं
स्वार्थ का व्यवहार
धर्म जाति में बंटो नहीं
करो सब आपस में प्यार
दिनों में गिनते चांदनी
आगे अँधेरा है अपार
प्रज्ज्वलित मन दीप करें
हरा भरा हो ये संसार
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
३-५-२०१३
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