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अपना उपवन
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जीता अब तन
जीता अब मन
दूं ये वचन
पूरे हों सपन
साथ छोड़ें न
रार ठाने न
अपना है वतन
उजड़े न चमन
मिल रहें मगन
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
३-५-२०१३
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