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गीत वो गा रहे
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गीत वो गा रहे
प्रचार देखते रहे
पुष्प झरें मुखार से
तलवार देखते रहे
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मंच था सजा हुआ
चमचों से अटा हुआ
गाल सब बजा रहे
भिन्न राग थे गा रहे
सुन जरा ठहर गया
भाव लहर में बह गया
चुनाव है था विषय
आतुर सुनने हर शय
शब्द जाल फेंक वे
जन जन फंसा रहे
गीत वो गा रहे
प्रचार देखते रहे
पुष्प झरें मुखार से
तलवार देखते रहे
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बढ़ बढ़ बली आये
चढ़ चढ़ मंच धाये
पांच साल क्या किया
उपलब्धि गिनवाये रहे
जिसे घोटाला कह रहे
घोटाला नहीं विकास है
स्विस बैंक जमा धन
अँधेरा नहीं प्रकाश है
सुरक्षित यहाँ धन नही
अधिक ब्याज ला रहे
गीत वो गा रहे
प्रचार देखते रहे
पुष्प झरें मुखार से
तलवार देखते रहे
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थी सडक कहीं नहीं
बिजली का पता नहीं
जगह जगह गड्ढे थे
शराब के अड्डे थे
दूकान पर राशन नहीं
स्वच्छ प्रशासन नही
धन्य वाद आपका
हम पे एतबार किये
गाड़ दिये खम्बे सभी
तार अभी लगवाय रहे
गीत वो गा रहे
प्रचार देखते रहे
पुष्प झरें मुखार से
तलवार देखते रहे
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अपराध में सानी नही
धन्धे में बेईमानी नही
टू जी हो या थ्री जी
कोयला घोटाला पी
देश सुरक्षा में भी
सेंध लगवाय रहे
रहने को घर नही
पीने को पानी नही
वाल मार्ट खोल कर
दारू पानी बिकवाय रहे
गीत वो गा रहे
प्रचार देखते रहे
पुष्प झरें मुखार से
तलवार देखते रहे
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सोना महंगा हुआ
चांदी लुभाय रही
दलहन उत्पादन घटा
वनरोज खाय रही
योजनाएं चली बहुत
मनरेगा छाय रही
बन्दर बाँट होये न
फेल हुई हाय री
गैस खाद महंगा किया
सब्सिडी हटवाय रहे
गीत वो गा रहे
प्रचार देखते रहे
पुष्प झरें मुखार से
तलवार देखते रहे
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बिन दवा गरीब मरे
बड़े लोग पाय रहे
दाने दाने मोहताज
अन्न को सडाय रहे
स्कूल में शिक्षक नहीं
लैपटॉप बंटवाय रहे
विदेश नीति में हम
सास बहू रिश्ता निभाय रहे
छीने जमीन कोई
शीश कटवाय रहे
गीत वो गा रहे
प्रचार देखते रहे
पुष्प झरें मुखार से
तलवार देखते रहे
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इस बार वोट दो
पांच वर्ष न आउंगा
दूर से तकोगे
हाथ नही आउंगा
बैठ सदन में
ठंडी हवा खाऊंगा
भूलूँगा मैं तुम्हें
तुम्हें याद आऊंगा
मदारी बन मैं
नाच खूब नचाउंगा
नख से शीर्ष तक
पोशाक देखते रहे
गीत वो गा रहे
प्रचार देखते रहे
पुष्प झरें मुखार से
तलवार देखते रहे
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प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
२-५-२०१३
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