kushwaha
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क्रांति
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चिंता छोड़ो सुख से जियो
पुस्तक हम भी ले आये
विश्वास रहा न उनके ऊपर
वोट थे जिनको दे आये
पढ़ा लगा मन उसे प्रतिदिन
चिंता दूर न हो पायी
गयी बेटी सवेरे पढने
जब तक वापस घर न आयी
कहाँ देखें कहाँ न देखें
हर पल लगा रहे अंदेशा
न जाने कहाँ मिल जाएँ
राक्षस बदले हुये वेषा
लाख उपाय कर के देखे
नित बदल बदल कर कानून
धरना प्रदर्शन आन्दोलन
रोक सका न बहता खून
सोच आपकी गलत नही
सोच कर सोच को देखो
जरूरी हुई नैतिक शिक्षा
मन आवेगों को रोको
सूरज तपना छोड़े न
मयूर न छोड़ता नर्तन
सैनिक बजाता बांसुरी
कवि करता अब कीर्तन
बदलेगा समाज कैसे
कैसे शांति अब आएगी
रामायण गीता भूले सब
सोचो कैसे क्रांति आयेगी
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
२२-४-२०१३
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