ओ कनहइया
ओ कनहइया
—————-
घोर कलियुग आ गया
बाप बड़ा न भइया
सारे जग को नाच नचाये
काला सफ़ेद रुपइया
वक्त कभी था जगह जगह
ज्ञान की बातें होती
लुटती अस्मत बीच सड़क
ममता घर घर रोती
कब बदलेगा ये चलन
जब’ भाई ‘ बनेंगे भइया
सारे जग को नाच नचाये
काला सफ़ेद रुपइया
हरी भरी धरती थी अपनी
कल कल नदिया बहती
भरपूर फसल दे उत्पादन
जन जन पेट को भरती
काटे वन काटे तन मन
दिखे न अब गौरइया
सारे जग को नाच नचाये
काला सफ़ेद रुपइया
सुनते थे हम प्रभु जी
पाप धरा पे बढ़ जाता
किसी रूप में खुद चलकर
तू धरती पे आता
टूट चुके हम सब मालिक
रक्षा कर ओ कनहइया
सारे जग को नाच नचाये
काला सफ़ेद रुपइया
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
21-3-2013
Read Comments