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पुकार

kushwaha
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पुकार

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साहित्य के सिपाहसालारों
धार लेखनी क्यों पडी मंद
हाहाकार मचा चहुँ ओर
समर भूमि में छिड़ा है द्वन्द
यूँ ही अग़र सोते रहे
लिखेगा कौन इतिहास तुम्हारा
बेवजह तुमको ढ़ोते रहे
बदनाम होगा नाम हमारा
इतिहास  तुम्हारा ऐसा न था
रन में वीरों को सींचा था
लिखते कैसे तुम प्रणय गीत
बैरी हुआ जब अपना मीत
सोने वाले तुम कभी न थे
रोने वाले तुम कभी न थे
मत रेंगो तुम अब पड़े पड़े
मौन रहो न अब खड़े खड़े
दुश्मन का न हो पूरा  सपना
उठाओ शीघ्र गांडीव अपना

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
२३-१२-२०१२

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