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प्रहार

kushwaha
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प्रहार

दहक उठे अंगारे धरती हुई रक्त से फिर पग पग लाल

जूझ पड़े वीर बाँकुरे झुके नहीं हँस  कटा दिए निज भाल
माँ  के लहराते आँचल में कायर  अरि  कंटक नित फंसाते
धन्य है  भारत वीर भूमि जहाँ  बलिदानी पलकन चुनते जाते
अरि मर्दन करने को खड़े रहते सीमा पर प्रहरी सीना ताने
हर बार लड़े  हर बार मिटे  हश्र उनका ये सारी दुनिया जाने
झूठ नही अपनी धरती सिंचित है सिद्धांत बुद्ध नेहरु गांधी से
ख़ामोशी से  मृत्यु बेहतर है लाभ क्या नित मांग उजड़ वाने से
सोचो न  समझो न अब बढ़ने दो वीरों को रोको न उनके पग
लहू से मांग सजे शमशीरों की प्यास बुझे सबक ले सारा  जग
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
10-1-2013

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