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परिवर्तन- कलम से

kushwaha
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जब भी लेखक अपने विचारों को वर्तनी के माध्यम से कागज़ पर मूर्त रूप देता है तो ये उतना ही कठिन होता है जैसे शिशु का जन्म. रचना कैसी भी बन पड़ी हो जन्मदाता को उतनी ही प्रिय होती है जैसे जन्मदाता को अपना शिशु. फिर शुरुआत होती है  इनके गुण और दोष की विवेचना की. ज्यादातर विवेचना में आलोचना पक्ष मुखर होता है. जबकि समालोचना करना चाहिए और इसके लिए आवश्यकता होती है विषयवस्तु पर गहरी पकड़ की. मैं  ठहरा   एक अनाड़ी लिखने वाला. आदत से मजबूर साहित्य की विभिन्न विधाओं में चोंच मारता रहता हूँ. पढ़ना मेरा शौक रहा है तो इसी क्रम में श्री तुफैल ऐ सिद्दीकी जी का लेख संग्रह ‘ परिवर्तन ‘ मेरे हाथ आया तो इसे शुरू से अंत तक लेखों के पढ़ने पर दिल में विचार उठे कि अभी तक मैने किसी पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त नहीं  किये क्यों न इस शुभ काम को भी करके देखा जाए. ये विचार यूँ हि नहीं उत्पन्न हुआ बल्की इसका श्रेय परिवर्तन में संग्रहित लेखों को जाता है.

तुफैल साहब जागरण जंक्शन  में भी लिखते हैं, पर उन्हें पढ़ने का सौभाग्य मुझे  प्राप्त नहीं हुआ.

तुफैल जी द्वारा लिखे गए एवं प्रकाशित लेखों का संग्रह उनकी प्रथम पुस्तक के रूप में है जिसे दो भागों में विभाजित किया गया है. प्रथम भाग में ८० लेखों एवं दूसरे भाग में जागरण जंक्शन में प्रकाशित २० लेखों को स्थान देकर शानदार शतक लगाया है.

तुफैल जी ने अपने लेखों के  माध्यम से समाज के सभी छुए अनछुए पहलुओं को यथा राजनीति , विज्ञान , कला, धर्म, यात्रा वृतांत , आदि को सरल, आम बोलचाल की भाषा में प्रस्तुत करते हुए समाधान दिए हैं. जो निश्चय ही  दुरूह कार्य है.

काला धन हो या भ्रष्टाचार , शिक्षा हो या स्वास्थ्य , पर्यावरण हो या मतदान, गुरु शिष्य परंपरा हो या नारी शशक्तिकरण , देश हो विदेश नीति, आरक्षण हो या व्यंग सभी प्रकार के लेखों में लेखक ने अपनी बेबाक मुखर लेखनी के माध्यम से अपनी स्वस्थ मानसिकता एवं खुले पन का परिचय दिया है. पढ़ने पर ऐसा लगा कि ये कम उम्र के होते हुए भी एक परिपक्व लेखक हैं. सबसे खास बात ये लगी जब लेख पढ़ना शुरू किया जाये तो बिना समाप्त किये छोड़ने का मन नहीं करता और अंत में इनके द्वारा लेख के समापन पर पाठक  के अंतःकरण से स्वयं में ध्वनि निकलती है ‘ परिवर्तन ‘

यद्दपि कि सभी लेख उच्च स्तर के हैं. पर इन लेखों ने मेरे दिल को छू लिया जिनका जिक्र किये बगैर मैं रह नहीं सकता.

४. राजनितिक पत्रकार बनाम पत्रकारिता

११. भारत चीन सम्बन्ध

१५. तुम अपने सामने हर एक को छोटा समझते हो

१९. खाद्य पदार्थों , औषधियों के साथ हि अब खून में भी मिलावट.

२२. स्वच्छ पर्यावरण स्वस्थ जीवन का आधार

२७. धर्म के ठेकेदारों की स्वयं की दिनचर्या क्या है ?

३०. नारी शशक्तिकरण में जींस -टॉप का महत्त्व ?

३३. उपेक्षित होता वृद्ध वर्ग.

५३. आपके लिए मुर्गा व् बोतल का इंतजाम कर दिया है.

५६. अबे तू कहाँ रहता है

५९. सामाजिक -सांस्क्रतिक बदलावों में टूटते पारंपरिक संयुक्त परिवार

६३. हिंदी अपने अस्तित्व की लड़ाई बदस्तूर लड़ रही है

६७. गरीबों की कोई जाति नहीं होती.

७३. महीने के पांच – छह हजार बचा लेता हूँ

७५. वैलेंटाइन डे का ‘ प्यार ‘

५. इमाम साहब का जूता

८. मस्जिद में इमाम साहब

रुपये १७५.०० में गागर में सागर मिले तो पढ़ने में क्या बुरा है.

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