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नारी और पुरुष

kushwaha
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जन्म लेत बालक जबहिं, घर मा मंगल छाय

बेटी जनमत जानतहि, काहे मात लजाय

नारी तन  का अंश है, नारी मन न सुहाय.

बिना युगल नहिं वंश हो, दूजा कहाँ उपाय??

नारी कोमल भावना, ममता छांव अनन्त.

नारी स्वागत जो करें, शान्तिप्रदायक संत.

पुरुष रूप पुरुषार्थी, नारी कुल का मान

दोनों के सम मेल से, होता जग कल्यान

मातृशक्ति नारी यहाँ, नारी है निष्काम.

पूजें जब-जब नारियाँ, बनते बिगड़े काम.

बाला दौड़े रेत पे, नन्हे पांव उठाय.

कहीं जलें नहिं पांव ये, गिरे न ठोकर खाय.

कोमल भावों से भरा, बाला का संसार.

आगे उसका भाग्य है, पुष्प मिलें या खार.

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